रविवार, 16 अक्तूबर 2011

बाकी आप सब समझदार हो....!!

        मित्रों,बहुत सी बातें रोज ऐसी हो जाती हैं,जिस पर व्यतीत होकर हम रोने-रोने को हो जाते हैं,मगर कुछ करने को नहीं हो पाते,क्योंकि कुछ कर पाना हमारी समझ से संभव नहीं होता....एक अकेला चना भाड़ क्या फोड़े की तर्ज़ पर और हम भीतर-भीतर रो ही पड़ते हैं,मगर रोने से ना कभी कुछ बदला है और ना बदलेगा....है ना...!!
             दरअसल हर संवेदनशील ह्रदय एक तो वैसे ही तड़पता रहता है,वर्तमान की दिशा एवं दशा देखकर... किसी के ऐसे उदगार उसकी भावनाओं को एकदम से उबाल दे देते हैं और वो रूंधा-रूंधा-सा हो ही जाता है...मगर चिंता की बात यह है कि हम अपने गुस्से को इस तरह से दबाये दिए जा रहे हैं...और फिर रोये-रोये से भी हुए जा रहे हैं,ये दोनों बातें साथ-साथ नहीं चल सकती...एक सतर्क-सजग नागरिक के रूप में हमें क्या करना है,उस पर ना सिर्फ हमें सोचना है,अपितु करते हुए भी दिखना है,करना है....तब ही कोई आशा है....बाकी आप सब समझदार हो....!! 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

शुभकामनाएं हम सभी को यदि 
अपने भीतर का रावण मिटा सकें
प्रेम-प्यार से वंचित इस धरती को 
फिर से हम सब जिला सकें !!
हममे से जो भी है समृद्द 
उसको कर्ण तो बनना होगा 
हर वंचित के सर के ऊपर 
इक छत्त बनंकर तनना होगा 
वरना इस समृद्धि पर धिक्कार है 
जिसके पीछे चारों तरफ इक हाहाकार है 
कब समझेंगे यह सब ज्यादा कमाने वाले 
अपने पेट से ज्यादा दूसरों का खाने वाले 
आग जली है जिनके भीतर और खाऊं-और खाऊं 
धरती का सारा धन लेकर मैं मर जाऊं 
सब जानते और कहते भी हैं कि खाली हाथ जायेंगे 
पता नहीं ये कब तक सबको और खुद को भरमायेंगे
इस रावण का क्या करें हम सब 
जो हम सब के भीतर बैठा है....
तरह-तरह के तर्कों के संग हममें वो जीता है 
कितना विवश और लाचार हैं हम इस रावण के आगे 
आदमी के लालच से डरकर उसके सारे गुण भागे 
रावण के पुतले को जलाकर हम भला क्या कर लेंगे 
अपनी इंसानियत को मार कर हम धरती को क्या देंगे 
आओ-आओ-आओ-आओ आज विजयादशमी मनाओ 
उससे पहले मगर इस रावण को तुम मार भगाओ 
तब लगेगा कि पहली बार दुर्गा पूजा आई.....
मन के भीतर इस दुर्गा की पवित्र जोत है छायी....!!

शनिवार, 24 सितंबर 2011

हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू........


मैं भूत बोल रहा हूँ..........!!
हैप्पी बर्थ डे आल ऑफ़ टू यू
दिन बदलते हैं....
कुछ बदलता सा दिखाई देता है....
मगर कुछ बदलता सा नहीं होता...
बस थोड़ा सा हम बदल जाते हैं....
एक दिन और बढ़ जाते हैं....
एक कदम और मृत्यु की और ले जाते हैं 
दिन बदलते जाते हैं...
और हर एक दिन के साथ 
बढ़ा लेते हैं हम 
अपनी कुछ और जिम्मेवारियां....
सर पर बोझ बढाते जाते हैं 
और खुद ही हर दिन 
अपने-आप पर बोझ बनते जाते हैं 
बदलता है ना बहुत कुछ...
हमारा हंसता हुआ चेहरा
उदासी में परिणत हो जाता है 
इस उदासी के बीच 
घर की जिम्मेवारियों के बीच 
किसी एक दिन या कुछेक दिन 
हम हंस लिया करते हैं 
और हो जाया करते हैं बाग़-बाग़ 
ढेर सारी बधाईयाँ पाकर
खुशह हो जाया करते हैं...
जब बहुत सारे लोग करते हैं विश हमें
जन्मदिन तो है ही सबका कोई ना कोई दिन 
मगर हर दिन को खुशियों से जी लें 
अपनी समस्त जिम्मेवारियों के बावजूद 
अपने तमाम दुखों और पीडाओं के बाद भी 
तो दोस्तों...इस जीवन का कोई अर्थ है...
है ना दोस्तों मेरे प्यारे दोस्तों....
तो आज मेरे जन्मदिन से 
आप भी अपने-आप से यह वादा करो
कि आप सब खुश रहो हमेशा 
अपने समस्त दुखों-पीडाओं के साथ भी....
ये जो कर्मफल हैं हमारे....
उन्हें नहीं मेट सकता कोई भी....
तो फिर दुखी होना 
जीवन का अपमान करना ही तो है....
आईये हम ख़ुशी मनाये अपने होने की....
आईये मैं देता हूँ.....
आपको अपने आने वाले जन्मदिवस 
की अनंत-असीम शुभकामनाएं....!!   

शुक्रवार, 23 सितंबर 2011

पता नहीं ऐसे लोग कब सुधरेंगे....!!??

           सड़क पर बाईक से चला जा रहा हूँ,मेरे ठीक बगल से दुसरे बाईक सवार मुझे ओवरटेक करके आगे निकलने का प्रयास करते हैं और इस क्रम में वो मुझे धक्का मारने वाली स्थिति में आ जाते हैं,मैं उनसे बचने की चेष्टा में अपनी बाईक को अचानक बाएं करने के कारण गिरते-गिरते बचता हूँ...मगर मुझसे आगे निकल गए उन बाईक सवारों को यह पता ही नहीं चल पाता  है,कि उनके द्वारा जान-बूझकर या अनजाने में की गयी इस बदमाशी से क्या हो सकता था...वो उसी तरह अपनी धून में आगे निकल जाते हैं,उसी रफ़्तार से शायद किसी और बाईक सवार को गिराने के लिए....पता नहीं ऐसे लोग कब सुधरेंगे....!!??