शनिवार, 28 जुलाई 2012

भाई आमिर....नमस्कार !!

भाई आमिर....नमस्कार  !!    
           एक बार फिर आमिर मैं तुम्हारे प्रोग्राम को देखते हुए कई बार भीतर ही भीतर रोता रहा,ये आंसू किन्हीं लोगों के जज्बे के,ईमानदारी के,हिम्मत के और अपने काम द्वारा समाज के सम्मुख एक मिसाल बन जाने वाली प्रेरणा के लिए थे,मैं रोया इस बात पर भी कि नौ साल का एक बच्चा,सब्जी बेचने वाली कोई औरत,कोई अशक्त-विकलांग व्यक्ति,तो कोई अशिक्षित व्यक्ति या कोई बूढ़ा-बुजुर्ग व्यक्ति किसी दर्द या समस्या को सामने पाकर बजाय हिम्मत हारने के उसके सामने कैसे दहाड़ कर खड़ा हो जाता है और वह समस्या या वो दर्द कैसे उसके सामने दुम दबाकर भाग खड़ी होती है !! मेरे सामने इससे भी बड़ी बात यह है कि कोई भी व्यक्ति किस प्रकार किसी विकट परिस्थिति के सामने आने पर अपने हौसले से उसे बौना साबित कर कर देता है और अपने कर्म के लिए वो जिस भी किसी क्षेत्र का चुनाव करता है उस क्षेत्र का कद भी विराट हो जाता है....आमिर इन बुलंद हौसलों को सलाम मगर एक सवाल मुझे अपने आप से भी है हम पढ़े-लिखे लोग जो अपनी जिन्दगी में टाईम नहीं है-टाईम नहीं का रोना रोता रोते है और अपनी जिन्दगी की अनगिनत समस्यायों को लोगों को गिनाते नहीं थकते....और इस तरह इन बहानों से खुद को अखिल/अखंड सामाजिकता और सरोकारों से बचाए रखते हैं.....ऐसे कार्यक्रमों से शायद हम जैसों को भी कोई दिशा मिले और हम जैसे समाज के लिए नकारा लोग भी समाज की इन जद्दोजहदों में खुद को शामिल कर खुद का ज़िंदा होना साबित कर सकें !!जय-हिंद....वन्दे-मातरम्...सत्यमेव-जयते !!    

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सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

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